उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ संपन्न हुआ छठ महापर्व
व्रतियों ने की समृद्धि और स्वास्थ्य की कामना
रांची। लोक आस्था का महापर्व छठ, उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ संपन्न हो गया। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर, सुबह 6 बजकर 32 मिनट पर व्रतियों ने उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया और धन, धान्य एवं आरोग्य की कामना की। इसके बाद व्रतियों ने पारण कर अपने कठिन निर्जला उपवास का समापन किया।
पौराणिक मान्यताएं और छठ का महत्व
छठ व्रत को स्वास्थ्य, सौभाग्य और संतान सुख प्राप्ति के लिए विशेष माना गया है। स्कंद पुराण के अनुसार, राजा प्रियव्रत ने भी कुष्ठ रोग से मुक्ति के लिए छठ व्रत किया था। पौराणिक कथा में सूर्यदेव द्वारा छठ व्रत किए जाने का उल्लेख मिलता है, जिसे प्रतिहार षष्ठी के रूप में भी जाना जाता है। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि सांस्कृतिक आस्था के साथ भी जुड़ा हुआ है।
चार दिवसीय छठ महापर्व का क्रम
छठ महापर्व की शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी तिथि को ‘नहाय-खाय’ के साथ हुई थी। इस दिन व्रतियों ने शुद्ध आहार का सेवन कर उपवास का संकल्प लिया था। इसके अगले दिन, 6 नवंबर को खरना मनाया गया, जिसमें व्रतियों ने रात में प्रसाद के रूप में खीर ग्रहण किया और इसके बाद 36 घंटे के कठोर निर्जला व्रत का पालन किया। पंचमी तिथि पर व्रतियों ने अस्त होते सूर्य को अर्घ्य दिया, जो छठ पर्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। अंततः, सप्तमी तिथि पर आज सुबह अरुणोदय काल में उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया गया। व्रतियों के पारण के साथ यह चार दिवसीय महापर्व पूर्ण हुआ।
साल में दो बार मनाया जाता है छठ महापर्व
छठ महापर्व चैत्र और कार्तिक मास में दो बार मनाया जाता है। इसमें नहाय-खाय, खरना, संध्याकालीन अर्घ्य और प्रातःकालीन अर्घ्य जैसे चार प्रमुख अनुष्ठान होते हैं। श्रद्धालु छठी मैया और भगवान सूर्य की कृपा प्राप्त करने के लिए यह कठिन व्रत रखते हैं। छठ पर्व का यह अद्भुत समर्पण, त्याग और संयम की मिसाल है। इस अवसर पर श्रद्धालु अपने परिवार की खुशहाली, सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य की कामना करते हैं।
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