मनोरमा देवी के घर छापे से रिश्वत तक की पूरी कहानी: NIA और CBI की जांच में खुलासा
गया। गया में 19 सितंबर को पूर्व एमएलसी मनोरमा देवी के घर और उनके प्लांट पर NIA की टीम ने छापेमारी की, जिसमें 4 करोड़ से ज्यादा नकदी और 8 लाइसेंसी हथियार बरामद हुए। इस बड़ी कार्रवाई का नेतृत्व NIA के डीएसपी अजय प्रताप कर रहे थे। लेकिन मामला यहीं खत्म नहीं हुआ। कुछ ही दिनों बाद यह छापेमारी एक बड़े घूसखोरी कांड में बदल गई, जिसका अंत डीएसपी अजय प्रताप की गिरफ्तारी के साथ हुआ।
छापेमारी के बाद रिश्वत की डील
NIA की छापेमारी के ठीक सात दिन बाद, मनोरमा देवी के बेटे रॉकी यादव को पटना बुलाया गया। वहां डीएसपी अजय प्रताप ने रॉकी से केस को रफा-दफा करने के लिए 3 करोड़ की रिश्वत मांगी। इस मांग के बाद रॉकी ने कहा कि वे निर्दोष हैं और इतनी बड़ी रकम देने में सक्षम नहीं हैं। इसके बावजूद, डीएसपी ने उन्हें धमकी दी कि अगर वे रिश्वत नहीं देंगे, तो उनके घर में अवैध हथियार रखकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा। इस धमकी के बाद रिश्वत की राशि पर मोलभाव शुरू हुआ और आखिरकार 70 लाख की घूस तय की गई। रकम किश्तों में देने का निर्णय लिया गया।
रिश्वत का खेल और CBI की गिरफ्तारी
पहली किस्त के रूप में 25 लाख की राशि दी गई, जिसे रॉकी यादव ने अपने मामा योगेश के माध्यम से पहुंचाया। दूसरी किश्त 30 लाख की दी गई। लेकिन तीसरी किस्त देने के दौरान, 3 अक्टूबर को, गया में सीबीआई ने डीएसपी अजय प्रताप और उनके साले हिमांशु को 20 लाख की रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया। सीबीआई ने तुरंत आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया और कोर्ट में उनकी पुलिस रिमांड की मांग की, ताकि उनसे इस घूसखोरी कांड के बारे में गहराई से पूछताछ की जा सके।
रिश्वत के पैसे लेने के लिए दो अलग-अलग नंबरों का इस्तेमाल
CBI को दी गई शिकायत में रिश्वत की रकम लेने के लिए दो अलग-अलग मोबाइल नंबरों का इस्तेमाल किया गया, जो इस घूसखोरी कांड का अहम हिस्सा बन गए हैं। CBI ने जांच में पाया कि रिश्वत की रकम देने के लिए जिन व्यक्तियों ने संपर्क किया था, उनके मोबाइल नंबर 9771736540 और 9279131110 थे। पहला नंबर, 9771736540, उस व्यक्ति का था जिसने 25 लाख रुपए की पहली किश्त ली थी। यह डिलीवरी गया जिले के आमस के पास हुई, जिसे रॉकी यादव के मामा योगेश ने पहुंचाया था। डिलीवरी लेने वाला व्यक्ति थार गाड़ी से आया था।
वीडियो रिकॉर्डिंग से बड़ा सबूत
इस पूरे लेन-देन की खास बात यह रही कि योगेश ने पैसे देते वक्त चुपके से वीडियो रिकॉर्डिंग कर ली। यह वीडियो CBI के लिए एक महत्वपूर्ण सबूत साबित हो सकता है, क्योंकि इससे घूसखोरी के इस पूरे मामले की कड़ियां जुड़ने में मदद मिलेगी।
सीबीआई की निगरानी और जाल
रॉकी यादव ने CBI को पहले ही लिखित में जानकारी दे दी थी कि उन पर NIA के डीएसपी द्वारा रिश्वत देने का दबाव बनाया जा रहा है। CBI ने इस सूचना पर कार्रवाई करते हुए अजय प्रताप और उनके साथियों पर नजर रखनी शुरू कर दी। जब 3 अक्टूबर को 20 लाख की तीसरी किश्त दी जा रही थी, उसी समय सीबीआई ने जाल बिछाकर उन्हें रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया। रिश्वत देने का स्थान मगध यूनिवर्सिटी कैंपस के पास था, जहां डीएसपी का साला हिमांशु खुल्लम-खुल्ला रॉकी यादव से पैसे ले रहा था। CBI के कुछ अधिकारी पहले से ही वहां मौजूद थे और जैसे ही लेन-देन हुआ, उन्होंने तुरंत सभी को पकड़ लिया।
डीएसपी अजय प्रताप सिंह का बैकग्राउंड
अजय प्रताप सिंह इनकम टैक्स विभाग के कर्मचारी थे और विशेष प्रतिनियुक्ति पर NIA में तैनात थे। वे रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक के दामाद हैं।
CBI की जांच और आगे की कार्रवाई
फिलहाल CBI ने इस मामले की जांच शुरू कर दी है और आरोपियों से पूछताछ की जा रही है। इस घूसखोरी कांड ने NIA और अन्य सरकारी एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। अब देखना यह है कि इस मामले में और कौन से तथ्य सामने आते हैं और किन-किन लोगों की संलिप्तता का खुलासा होता है। यह घटना न केवल NIA की छवि पर धब्बा लगाती है, बल्कि कानून-व्यवस्था पर भी सवाल उठाती है कि कैसे उच्च पदों पर बैठे अधिकारी अपने पद का दुरुपयोग कर घूसखोरी में लिप्त होते हैं। अब सभी की नजरें इस केस के आगे की जांच और न्यायिक प्रक्रिया पर टिकी हैं।
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